Ovulation Disorders Kya Hai

Ovulation Disorders क्या है और कैसे प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है- Ovulation Disorders Kya Hai ?

ovulation kya hai



मां बनना एक सुखद एहसास है। गर्भावस्था हर महिला के जीवन का एक खास पल होता है। लेकिन प्रजनन प्रणाली में किसी तरह की समस्या आने से इस खुशी में खलल आ सकती है। अधिकांश महिलाएं अपने मासिक धर्म चक्र में होने वाले बदलाव पर ध्यान केंद्रति नहीं करती है। गर्भाधारण के समय इन सभी समस्या का पता चलता है।  


ऐसी कई महिलाएं जिनके मासिक धर्म अनियमित और इससे ओवुलेशन भी अनियमित होते है। कुछ महिलाएं तो कभी-कभी ओवुलेट होती हैं कभी नहीं होती हैं। कुछ में कभी-कभी मासिक धर्म तो आता है, लेकिन ओवुलेट नहीं करती हैं। बांझपन वाली लगभग आधी महिलाओं को यह विकार होता है जिसे “ओव्यूलेशन डिसऑर्डर" के रूप में जाना जाता है। आज इस आर्टिकल में हम बात करेंगे की ओवुलेशन डिसऑडर क्या है और ओवुलेशन गर्भावस्था को कैसे प्रभावित करता है।


ओवुलेशन क्या है और कब होता है?- Ovulation Kya Hai Aur Kab Hota Hai




महिलाओं में मासिक चक्र में ओवुलेशन एक बहुत अहम शब्द है। अगर आप भी अपनी पीरियड साइकिल और कंसीव करने के सही समय के बारे में जानना चाहती हैं तो पहले आपको जानना होगा की ओवुलेशन क्या है

एक महिला के मासिक धर्म चक्र के चार चरण होते हैं - 


  • मासिक धर्म (Menstruation), 

  • फॉलिक्यूलर चरण (Follicular Phase),

  • ओवुलेशन (Ovulation)

  • और आखिर में ल्यूटियल चरण (Luteal Phase)


ओवुलेशन मासिक चक्र का हिस्सा होता है। एक महिला लगभग 1 मिलियन अंडों के साथ पैदा होती है। ये छोटे अंडे फॉलिकल्स नामक छोटी थैली में विकसित होते हैं। हर महीने फॉलिक्यूलर चरण के दौरान एक महिला का शरीर एफएसएच (Follicle Stimulating Hormone) रिलीज करती है। यह हार्मोन आपके शरीर को अंडों को मैच्योर करने और उन्हें रिलीज के लिए तैयार करने में मदद करती हैं। अंडे के मैच्योर होने के बाद आपका शरीर आगे ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (Luteinizing Hormone) जारी करता हैं, जिससे अंडों को रिलीज करने के लिए गति मिलती है। इन हार्मोनों को रिलीज करने में मस्तिष्क के एक हिस्सा नियंत्रित करता है जिसे हाइपोथैलेमस कहा जाता है।


अंडाशय से अंडों के निकलने की इस प्रक्रिया को ओवुलेशन के रूप में जाना जाता है। सामान्य तौर पर जिस महिला का 28 का मासिक चक्र है तो वह 14वें दिन में ओवुलेट करती है। कृपया ध्यान दें कि ओव्यूलेशन अवधि महिला से महिला में भिन्न होती है। जिसका मासिक चक्र 21 दिन का होता है तो वह 7वें दिन में ओवुलेट होती है और जिस महिला का मासिक चक्र 35 या 36 दिन का होता है वह 21 दिन में ओवुलेट होती है।


कुछ ऐसे लक्षण देखे गए है जिनकी मदद से पता चलता है कि एक महिला का अंडाशय ओवुलेशन की क्रिया से गुजर रहा है। ओवुलेशन के लक्षण में इस प्रकार हो सकते हैं-


ओवुलेशन के लक्षण


  • पेट निचले हिस्से में हल्का दर्द होना

  • सेक्स करने की इच्छा का बढ़ना

  • योनि में सूजन आना

  • शरीर का तापमान का कम या ज्यादा रहना

  • सफेद, पतला, चिकना और साफ डिस्चार्ज का आना

  • सर्विक्स का नरम होकर खुल जाना

  • सिर में दर्द रहना

  • कभी-कभी जी मिचलाना


ओवुलेशन डिसऑर्डर क्या है?- Ovulation Disorder Kya Hai


महिलाओं में बाँझपन का सबसे अहम कारक में से एक है ओवुलेशन असामान्यताएं है। ओवुलेशन डिसऑर्डर को एक महिला के मासिक चक्र के दौरान एक अंडे के निर्माण में अनियमितता के रूप में वर्णित किया जा सकता है।

यह विकार एंडोक्राइन सिस्टम को प्रभावित करने वाली स्थितियों का एक समूह है। यह एक हार्मोनल विकार है जो ओवुलेशन अवधि में देरी या बाधा का कारण बनता है। यह आपके मासिक धर्म के दौरान अंडे के उत्पादन में गड़बड़ी से परिभाषित होता है। यह अनियमित ओव्यूलेशन या ओव्यूलेशन की पूर्ण अनुपस्थिति का कारण बन सकता है। 


ओवुलेशन डिसऑर्डर के प्रकार- Ovulation Disorder Ke Prakar


  • अनओवुलेशन (Anovulation)

ओवुलेशन न होना और अनओवुलेशन, एक विकार है जिसमें अंडे सही से विकसित नहीं होते है। या अंडे के फॉलिकल इन्हें जारी नहीं किया जाता है। जिन महिलाओं को यह विकार है, उनमें कई महीनों तक मासिक धर्म नहीं होने की परेशानी होती है। कुछ को मासिक धर्म हो भी सकता है भले ही वे ओवुलेट नहीं कर रही हों।


  • हाइपोथैलेमस डिसफंक्शन (Hypothalamic Dysfunction)

हाइपोथैलेमस ब्रेन का एक छोटा और अहम भाग होता है। ये एक ग्रंथि (आपके मस्तिष्क में मौजूद) है जो आपके शरीर के कई जरूरी कार्यप्रणालियों और हार्मोन सिस्टम को नियंत्रित और रेगुलेट करने के लिए जिम्मेदार है। ये नर्व्स सिस्टम और एंडोक्राइन सिस्टम के बीच की सबसे अहम कड़ी होती है। हाइपोथैलेमस शरीर को होमियोस्टैसिस (homeostasis) नामक स्टेबल स्टेट में संतुलित रखता है। यह ग्रंथि पिट्यूटरी ग्रंथि को हार्मोन जारी करती है जो आगे इन हार्मोनों को आपके अंडाशय सहित आपके कई अंगों में भेजती है। यह ग्रंथि आपके मासिक धर्म चक्र को भी प्रभावित कर सकती है।


हाइपोथैलेमिक डिसफंक्शन भी हाइपोथैलेमिक एमेनोरिया का कारण बन सकता है। इस स्थिति में हाइपोथैलेमस ग्रंथि में किसी समस्या के कारण आपका मासिक धर्म कई महीनों तक रुक जाता है। यह स्थिति उच्च कोर्टिसोल के स्तर के परिणामस्वरूप हो सकते है जो हाइपोथैलेमस-अंडाशय कनेक्शन को कम करती है। इन दोनों के बीच एक खराब संबंध कम हार्मोनल स्तर का कारण बन सकता है। मासिक धर्म की अनुपस्थिति ओव्यूलेशन विकारों का कारण बनती है।


  • पीसीओएस (Polycystic Ovarian Syndrome)

पीसीओएस का मतलब होता है कि पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम जो एक गंभीर बीमारी होती है। यह एक मेटाबोलिक डिसऑडर है जोकि महिला के हर्मोनल इम्बैलेंस से जुड़ा होता है। इस स्थिति में ओवरी पुरुष हर्मोन ज्यादा मात्रा में रिलीज करना शुरु कर देता है जिससे ओव्यूलेशन में अनियमित होती है। इस स्थिति में अंडाशय में बहुत सारे सिस्ट बन जाते है। क्योंकि महिलाओं की दो ओवरीज होती हैं और वह हर महीने एक एग रिलीज करती हैं। यह ओवरीज महिलाओं में कुछ हार्मोन्स भी रिलीज करती हैं लेकिन अंडाशय में इमैच्योर अंडे होने के कारण    न तो ऑव्युलेशन (Ovulation) होता है और ना ही गर्भ ठहरता हैं। और इस कंडीशन में वजन तेजी से बढ़ता है। 


  • पीसीओडी (Polycystic Ovarian Disorder)

पीसीओडी का मतलब होता है पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिसऑर्डर है जो अंडशय में टाइम से पहले ही एग्स को  रिलीज कर देता है। जिससे अंडशय में सिस्ट बन जाते है और ओवरी का साइज बढ़ने लगता है। यह महिलाओं में एण्ड्रोजन यानी पुरुष हार्मोन के बढ़ने का विकार होता है।  

ऐेसा होने पर महिलाओं के पीरियड्स में अनियमिता, वजन का बढ़ना, स्ट्रेस ज्यादा लेना और हर्मोन का असंतुलित का होना शामिल है। इससे महिला की फर्टिलिटी पर भी असर पड़ता है।


  • हाइपोथैलेमिक एमेनोरिया (Hypothalamic Amenorrhea) 

हाइपोथैलेमिक एमेनोरिया वाली महिलाओं में ओव्यूलेशन अनियमित या गैर-मौजूद हो सकता है क्योंकि उनके शरीर में अंडाशय में हार्मोन आवेगों को प्रसारित करने के लिए आवश्यक पोषण या वसा सामग्री की कमी होती है। उच्च या निम्न शरीर का वजन, अत्यधिक वजन बढ़ना या हानि, और अत्यधिक तनाव सभी कारण योगदान दे सकते हैं। नर्तक, एनोरेक्सिक महिलाएं और पेशेवर एथलीट अक्सर हाइपोथैलेमिक एमेनोरिया का अनुभव करते हैं।


  • प्रीमैच्योर ओवेरियन फेलियर (Premature Ovarian Failure)

पीओएफ यानी 40 की उम्र से पहले ओवरीज का सामान्य रूप से काम न करना। कह सकते हैं कि ओवरीज में सामान्य रूप से एस्ट्रोजन हार्मोन का निर्माण न होना या नियमित रूप से अंडे का रिलीज न होना। इससे निसंतानता या बच्चा न होना आम समस्या है। ये समस्या आनुवांशिक है लेकिन पर्यावरण व जीवनशैली जैसे कि धूम्रपान, शराब पीने की लत, लंबी बीमारी जैसे थायरॉइड व ऑटोइम्यून रोग, रेडियोथैरेपी या कीमोथैरेपी होना भी मुख्य कारण हैं। इसके अलावा जेनिटल टीबी भी उम्र से पहले ओवरीज फेल होने की वजह हो सकती है।


ओवुलेशन डिसऑर्डर के लक्षण- Ovulation Disorder Ke Lakshan


अनओवुलेशन वाली महिलाओं में मासिक अवधी अनियमित होती है। कई मामलों में तो महिला को मासिक धर्म नहीं होते हैं। ओव्यूलेशन विकार के कारण और ओव्यूलेशन को प्रभावित करने वाले हार्मोन के आधार पर, लक्षण अलग-अलग होंगे। कुछ मामलों में, बांझपन ही एकमात्र लक्षण हो सकता है। अन्य में शामिल हैं:

  • अनियमित पीरियड्स- अनियमित या अनुपस्थित पीरियड्स आम हैं।

  • मनोदशा में बदलाव- इनमें आमतौर पर चिंता, अवसाद और घबराहट शामिल हैं।

  • वजन में बदलाव- वजन बढ़ना अक्सर हाइपोथायरायडिज्म के साथ मेल खाता है, जबकि वजन कम होना हाइपरथायरायडिज्म के साथ होता है।

  • अगर आपके चक्र 21 दिनों से कम या 36 दिनों से लंबे हैं, तो आपको ओवुलेशन की समस्या हो सकती है। आपके चक्र 21 से 36 दिनों की सामान्य सीमा के बीच आते हैं, लेकिन आपके चक्र की लंबाई एक महीने से दूसरे महीने में सामन्य से भिन्न होती है, तो ये भी ओवुलेशन संबंधी अक्षमता का संकेत होता है। 


ओवुलेशन डिसऑर्डर के कारण- Ovulation Disorder Ke Karan


ओवुलेशन विकार महिलाओं में बांझपन के शीर्ष कारणों में से एक है। ओवुलेशन की समस्याओं के कुछ अन्य कारण निम्नलिखित हैं -  

  • पिट्यूरी ग्लैंड का कम हार्मोन रिलीज करना

  • ओवरी का कम मात्रा में एस्ट्रोजन पैदा करना

  • प्रोलैक्टिन का लेवल बढ़ना

  • शरीर में मेल हार्मोन बढ़ना

  • तनाव का स्तर

  • मधुमेह 

  • मोटापा 

  • अत्यधिक व्यायाम कुछ दवाएं (जैसे एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टिन और एंटीड्रिप्रेसेंट्स) 

  • वजन घटाना 

  • मनोवैज्ञानिक तनाव 

कभी-कभी जल्दी रजोनिवृत्ति होना भी एक कारण होता है कि जब मैच्योर होने के लिए अंडों की आपूर्ति जल्दी खत्म हो जाती है।


ओवुलेशन डिसऑर्डर के लिए आयुर्वेदिक उपचार- Ovulation Disorder Ke Liye Ayurvedic Upchar


महिला में निसंतानता के पीछे ओवुलेशन डिसऑर्डर की समस्या जैसे पीसीओडी, पीसीओएस, तनाव, खराब जीवनशैली और सामाजिक कारण आदि हो सकते हैं जिसका समय पर आयुर्वेदिक इलाज करने से दूर किया जा सकता है। कई जटिल बीमारियों के साथ ही गर्भधारण करने से लेकर अनियमित पीरियड्स तक पूरा इलाज आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जरिए पूरी कुशलता के साथ किया जा सकता है। आयुर्वेद की प्राचीन पंचकर्म चिकित्‍सा पद्धति जिसमें वमन कर्म, विरेचन कर्म, बस्ती कर्म, नस्यम कर्म तथा रक्त मोक्षण के द्वारा बहुत ही कम समय में ओवुलेशन डिसऑर्डर विकार से निजात पा सकते है।

आयुर्वेद वात-कफ दोष, पचाना और अपान वतनुलोमाना को शांत करने पर केंद्रित हैं। उत्तर बस्ती उपचार में गर्भाशय के जरिए फैलोपियन ट्यूब में एक विशेष प्रकार की औषधीय तेल, घी, या काढ़ा डाला जाता है। इसको करने में मात्रा 15 से 20 मिनट तक का समय लगता है। यह थेरेपी लगातार तीन दिनों तक या रोगी के आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। उत्तर बस्ती प्रीमैच्योर ओवेरियन फेलियर, पीसीओएस और पीसीओडी के इलाज में भी उपयोगी है। 

आयुर्वेद अहार-विहार पर सबसे ज्यादा जोर देता है क्योंकि अधिकतर बीमारियों की जड़ हमारे भोजन और जीवनशैली पर निर्भर करता है। इसलिए एंडोमेट्रियम पतली परत वाली पीड़ित महिलाओं को अपने खानपान पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरुरत होती है।

आयुर्वेद में ऐसी कई जड़ी-बूटियां हैं जिनके सही उपयोग से आप ओवुलेशन डिसऑर्डर की समस्या को दूर कर सकते है। इनमें ओवुलेशन डिसऑर्डर की जड़ी-बूटियां शामिल हैं-

  1. चंद्रप्रभा वटी

  • चंद्रप्रभा वटी के इस्तेमाल से महिलाओं में इंफर्टिलिटी की परेशानी को दूर किया जा सकता है।

  • चंद्रप्रभा वटी का इस्तेमाल ओवुलेशन डिसऑर्डर को दूर करने के लिए किया जाता है। 

  • ओव्यूलेशन डिसऑर्डर और थायराइड हार्मोन असंतुलित होने की वजह से भी महिलाओं में इंफर्टिलिटी की शिकायत हो सकती है। 

  1. शतावरी

  • आयुर्वेदिक इलाज के दौरान महिलाओं के प्रजनन क्षमता को बढ़ाने के लिए शतावरी का इस्तेमाल किया जाता है। 

  • ओवुलेशन डिसऑर्डर के इलाज जैसे प्रीमैच्योर ओवेरियन फेलियर में शतावरी का सेवन किया जा सकता है। 

  • यह जड़ी-बूटी अंडे को पोषण देने में मददगार साबित होता है। 

  1. अश्वगंधा 

  • अश्वगंधा एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है और कई स्वास्थ्य स्थितियों में फायदेमंद है। ये महिला में प्रजनन क्षमता को बढ़ावा देता है।

  • इससे तनाव, पीसीओडी और पीसीओएस के लक्षण को सुधारा जाता है जो कोर्टिसोल के स्तर को संतुलित करता है। 

  1. हल्दी

  • हल्दी में करक्यूमिन मौजूद होता है जो एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण से भरपूर होता है। 

  • इंसुलिन प्रतिरोध को कम करने में सबसे अच्छी औषधी है। इसके इस्तेमाल से पीसीओडी, पीसीओएस और अनओवुलेशन की समस्या में सुधार लाने में मदद करता है।

  1. वृश्चिकाली

  • यह ओव्यूलेशन के लिए सबसे प्रभावी जड़ी बूटी है। 

  • इसकी कैल्शियम सामग्री और एंटीऑक्सीडेंट गुण महिलाओं की गर्भधारण करने की क्षमता को प्रभावित करते हैं। 

  • यह विटामिन ए, सी, डी और के, पोटेशियम, फास्फोरस, लौह और सल्फर में समृद्ध है। वृश्चिकाली महिला के प्रजनन स्वास्थ्य को बढ़ाती है।


फर्टिलिटी बढ़ाने के लिए डाइट में शामिल करें ये चीजें- 


हरी सब्जियां- हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करने से प्रजनन अंग बेहद स्वस्थ रहते हैं। हरी सब्जियों में कई पोषण तत्व जैसे मिनरल, आयरन, फोलिक एसिड और एंटीऑक्सीडेंट मौजूद होते है जो महिला को कंसीव करने में मदद करता है। 

सूखे मेवे और बीज- जल्दी कंसीव करने के लिए महिलाओं को अपनी डाइट में सूखे मेवें और बीज को शामिल करना चाहिए। इनमें मौजूद ओमेगा 3 फैटी एसिड शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है। अलसी, कद्दू के बीज, सुरजमुखी के बीज, चिया, बदाम, अखरोट, किशमिश, तिल आदि को शामिल करे।

फल- फर्टिलिटी बढ़ाने और ओवुलेशन को ठीक करने के लिए फलों का सेवन जरुर करें। फलों में कीवी, संतरा, मौसमी, स्ट्रॉबेरी, ब्लूबेरी और किवी फ्रूट जैसे फलों का रोज खाएं। इन फलों में विटामिन-सी मौजूद होते है जो कंसीव करने में भी मदद करता है। 


फाइबर युक्त आहार- अपने भोजन में फाइबर युक्त आहार जैसे साबुत अनाज, गेहूं की रोटियां, ब्राउन राइस और बींस को जरूर शामिल करें। ये पाचन तंत्र को मजबूत बनाने के साथ फर्टिलिटी को भी बेहतर बनाता है।

मिल्‍क- दूध में कैल्शियम के साथ-साथ प्रोटीन की भी ज्यादा मात्रा होती है। दूध में मौजूद प्रोटीन की मदद से फर्टिलिटी हॉर्मोन जल्दी बनने में मदद मिलती है। इसके लिए आप गाय का दूध में हल्दी मिलाकर सेवन करें जो असानी से पच सकें और फर्टिलिटी बढ़ाने में मदद करता है। 


आखिर में आपको यही सलाह दी जाती है कि ऐसे भोजन का सेवन करें जो असानी से पच सकें। मैदा से बने खादुय पदार्थ का सेवन बिल्कुल न करें, साथ ही दही, केले, बेसन, चने की दाल और गरम मसाले के सेवन से बचें। खानपान के अलावा आप दिन में एक बार योगा जरुर करे जो फर्टिलिटी रेट को बूस्ट करने में मदद करता है।

सुर्य नमस्कार, भुजंगासन, अनुलोम-विलोम, तितली आसन, कपालभाती, नौकासन, भ्रमारी प्राणायाम और 30 मिनट तक पैदल चले।


इस लेख की जानकारी हमें डॉक्टर चंचल शर्मा द्वारा दी गई है। इस विषय से जुड़ी या अन्य पीसीओएस, ट्यूब ब्लॉकेज, हाइड्रोसालपिनक्स उपचार पर ज्यादा जानकारी चाहते हैं। हमारे डॉक्टर चंचल की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाए या हमसे +91 9811773770 संपर्क करें।


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